सबसे पहली बात की कौआ कान ले गया तो कौआ दौड़ाने में लग जाओ इससे पहले कान छू कर यह पड़ताल कर लेनी चाहिये की वाकई कान अपनें स्थान पर है या कौआ ले गया है, इस्लाम, शरीयत या मुस्लिम पर्सनल लॉ में तलाक-तलाक-तलाक कहनें से वाकई और तत्काल प्रभाव से मुस्लिम जोड़े का दाम्पत्य विलगित हो जायेगा ऐसा कोई प्रावधान अमल में है-ही-नहीं , दाम्पत्य के विलगित होनें की एक पूरी-पूरी दीर्घकालिक प्रक्रिया है तमाम धर्मों-मतावलम्बियों में दिये गये प्रावधानों का सुविधानुसार मतलब निकालने की जो कुरीति चल पड़ी है निश्चित रूप से मुस्लिम समुदाय भी इससे अछूता नहीं है और कतिपय लोग प्रावधानों की उलूल-जुलूल मीमांशा करके नाजायज रूप से फायदा उठाते होंगे ही, इसी वजह से कुछ मुस्लिम विवाहिता बहनें जबरन और एकतरफा तौर पर इस कुरीति का शिकार बनीं और मजहब और तोड़-फोड़ आधारित राजनीति करनें वाली पार्टी को इस सामुदायिक कुरीति को मुद्दा बनानें का अवसर मिला ।
माननीय उच्चतम न्यायालय के मौजूदा फैसले का स्वागत और समर्थन करते हुये आदर्शवादी कांग्रेस पार्टी यह उम्मीद करती है की मौजूदा फैसले की रोशनी में अब संसद द्धारा गंभीर और ग्राह्य क़ानून बनाकर इस गंभीर कुरीति पर व्यापक रोकथाम की जायेगी , इसी विषय पर आगे बोलते हुये आदर्शवादी कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बृजेन्द्र दत्त त्रिपाठी नें कहा कि ऐसी विवाहित स्त्रियों को भी न्याय पानें के लिये आगे आना चाहिये जिनके पतियों नें बिना तलाक और समझौतों के अपनें आपको पत्नियों से अलग कर लिया है अथवा विवाहित पत्नियों को छोड़कर दूसरी स्त्री के साथ और सानिध्य में जीवन बिता रहे हैं , ज्ञांत हो कि एक गैर आधिकारिक आंकड़े के अनुसार अकेले हिन्दू समुदाय में ऐसी स्त्रियों की संख्या लगभग पचास लाख है जिनमें से एक मामला भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री से भी जुड़ा हुआ है